​ढोंगी और पाखंडी  साधुओं के संबंध में एक प्रश्न के जवाब में ओशो कहते हैं कि…


 *धर्म के नाम पर तुम्हारा शोषण करने वाले इन मुर्दों से छुटकारा कब पाओगे? इन लाशों को कब तक ढौओगे?*

दूसरा प्रश्न: साधु—संतों को देखकर ही मुझे चिढ़ होती है और क्रोध भी आता है। मैं तो उनमें सिवाय पाखंड के और कुछ भी नहीं देखता हूं। पर आपने न मालूम क्या कर दिया है कि श्रद्धा उमड़ती है! आपके प्रभाव का रहस्य क्या है?
सतीश! 

बात सीधी—सादी है: *मैं कोई साधु—संत नहीं हूं।* और ठीक ही है कि साधु—संतों पर तुम्हें चिढ़ होती है। चिढ़ होनी चाहिए अब। हजारों साल हो गए! इन मुर्दों से कब छुटकारा पाओगे? इन लाशों को कब तक ढोओगे? अगर तुम में थोड़ी भी बुद्धि है, तो चिढ़ होगी ही। तोतों की तरह यह तुम्हारे तथाकथित साधु—संत दोहराए जा रहे हैं— रामायण की कथा, उपनिषद,वेद, सत्यनारायण की कथा। 

              न इनके जीवन में सत्य का कोई पता है न नारायण का कोई पता है। न इनके जीवन में राम की कोई झलक है, न कृष्ण का कोई रस बहता है। न तो बांसुरी बजती है इनके जीवन में कृष्ण की, न मीरा के घुंघरुओं की आवाज है। इनके जीवन में कोई उत्सव नहीं है, कोई फाग नहीं है, कोई दीवाली नहीं है। इनके जीवन में कुछ भी नहीं है। 

                  इन्होंने तो सिर्फ धर्म के नाम पर तुम्हारा शोषण करने की एक कला सीख ली है। ये पारंगत हो गए हैं। और ये उन बातों को उपयोग करते हैं, जिन बातों से सहज ही तुम्हारा शोषण हो सकता है।


              भिखमंगे भी इस देश में ज्ञान की बातें कहते हैं, मगर उसका प्रयोजन कुछ ज्ञान से नहीं है। *भिखमंगे भी कहते हैं कि दान से बड़ा पुण्य नहीं है।* कोई न उन्हें पुण्य से मतलब है, न दान से मतलब है। मतलब तुम्हारी जेब से है। 
             *वे तुम्हारे अहंकार को फुसला रहे हैं कि दान से बड़ा पुण्य नहीं है, कहां जा रहे हो, दान करो! और लोभ को पाप का बाप बताते हैं। वह तुमसे कह रहे हैं कि लोभ पाप का बाप है, बचो इससे!* दे दो, हम तुम्हें हलका किए देते हैं। और मांग रहे हैं। भिखमंगे हैं। और *मांगना लोभ से हो रहा है, लेकिन शिक्षा वे अलोभ की दे रहे हैं!*
             *तुम्हारे भिखमंगों में और तुम्हारे साधु—संतों में कुछ बहुत फर्क नहीं है। तुम्हारे भिखमंगे में और तुम्हारे साधु—संतों में इतना ही फर्क है कि भिखमंगे गरीब और साधु—संत थोड़े सुशिक्षित, थोड़े सुसंस्कृत। भिखमंगे थोड़े दीन—हीन, और तुम्हारे साधु—संत तुम्हारा शोषण करने में ज्यादा कुशल हैं।*
💓ओशो💓

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