❤ एक शराबी ने चार दिन पहले मुझे कहा कि छूटती नहीं।
मैंने कहा, तू फिक्र ही छोड़ दे। छोड़ना भी क्या है? शराब ही पीता है; किसी का खून तो नहीं पी रहा! वह थोड़ा चौंका। उसने कहा, लेकिन शराब बड़ी बुरी चीज है। मैंने कहा, रहने दे बुरी है। बुरी पर ज्यादा ध्यान मत दे। क्योंकि जीवन के बड़े जटिल नियम हैं।
अगर तुम बुरे को छोड़ने पर ज्यादा ध्यान दो, तो तुम बुरे से ही आविष्ट होते जाओगे। जिस चीज पर ध्यान दो, उसी से सम्मोहन हो जाता है। आंख लगाकर देखते रहो किसी चीज को, तुम उसके प्रभाव में पड़ जाते हो।
तू छोड़ दे फिक्र। शराब की फिक्र मत कर, ध्यान की फिक्र कर। तेरी जीवन—ऊर्जा ध्यान की तरफ जाने लगे, किसी दिन अपने आप तू पाएगा, शराब गई। पता भी नहीं चलेगा, कैसे छूटी। पता चले, तो मजा नहीं रहा। छोड़ना पड़े, तो बात ही क्या हुई। छोड़—छोड़कर छोड़ी, तो क्या खाक छोड़ी। छोड़ी ही नहीं। छोड़—छोड़कर छोड़ी, तो रेखा छूट जाएगी, घाव बन जाएगा।
घाव बन जाए सदा के लिए, वह उचित नहीं है। फिर कभी गिरने का डर रहेगा। छूटनी चाहिए, छोड़नी नहीं चाहिए। कुछ विराट मिले, कुछ बड़ा मिले, तो छूट जाए। छूट जाती है।
इस संसार में कुछ भी नहीं है, जो तुम्हें परमात्मा के पास जाने से रोक सके। हाँ , तुम ही रुकना चाहो, तो बात अलग।
लेकिन जब तुम मेरे पास आए हो, तो उसका अर्थ है कि तुम जाना चाहते हो, बात पूरी हो गई। तुम तामसी हो, कि राजसी, कि सात्विक, कुछ अंतर नहीं पड़ता। तुम जहां हो, मैं वहीं से काम शुरू करता हूं। मेरे द्वार सबके लिए खुले हैं।
❤ ओशो ❤
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