ओशो – परमात्मा का अनुभव ।

​लोग मुझसे पूछते हैं,  लोग सदा से पूछते रहे हैं कि यह कैसे  पता चलेगा कि ध्यान लग गया?  यह कैसे पक्का पता चलेगा कि परमात्मा मिल गया?  यह कैसे पक्का पता चलेगा कि समाधि है?  मैं उनसे कहता हूं कि तुम्हारी  खोपड़ी में कोई लट्ठ मार दे,  तब तुम्हें कैसे पक्का पता  चलता है… अधिक पढ़ें ओशो – परमात्मा का अनुभव ।

ओशो – ध्यान में होने वाले अनुभव !

यही क्या कम है ? इस अंधेरे से भरी जिंदगी में अगर क्षणभर को भीतर रौशनी हो जाती है , कोई कम चमत्कार है ? क्योंकि वहां न तो बिजली का कोई कनेक्शन है , न वहां कोई ईंधन है , न वहा कोई तेल है । बिन बाती बिन तेल ! यह रोशनी चमत्कार… अधिक पढ़ें ओशो – ध्यान में होने वाले अनुभव !

ओशो – सहज योग का अर्थ 

सहज-योग का अर्थ होता है — कृत्रिम न होओ , स्वाभाविक रहो अपने ऊपर आदर्श मत ओढो़ , आदर्श पाखंड लाते हैं । आदर्शों के कारण विकृति पैदा होती है ,क्योंकि कुछ तुम होते हो , कुछ तुम होने की चेष्टा करते हो , तनाव पैदा हो जाता है । फिर तुम जो हो वह… अधिक पढ़ें ओशो – सहज योग का अर्थ 

ओशो – पहले विचार फिर निर्विचार !

मनुष्य को समझने के लिए सबसे पहला तथ्य यह समझ लेना जरुरी है कि मनुष्य के जीवन में जो चीजें सहयोगी होती हैं ,  एक सीमा पर जाकर वे ही चीजें बाधक हो जाती हैं । अगर कोई  आदमी सोचे भी , विचार भी करे , तो भी इस महत्वपूर्ण तथ्य का एकदम से दर्शन… अधिक पढ़ें ओशो – पहले विचार फिर निर्विचार !

ओशो – जागरण की सीढ़ियां 

जागरण की तीन सीढ़ियां हैं।   पहली सीढ़ी— प्राथमिक जागरण।  बुरे का अंत हो जाता है और  शुभ की बढ़ती होती है।  अशुभ विदा होता होता है,  शुभ घना होता है।  द्वितीय चरण— शुभ विदा होने गलता है,  शून्य घना होता है। और  तृतीय चरण- शून्य भी विदा हो जाता है।  तब जो सहज…तब जो… अधिक पढ़ें ओशो – जागरण की सीढ़ियां 

ओशो – प्रेम योग 

​ प्रेम एक ऊर्जा क्षेत्र है…… .वैज्ञानिक भी इससे सहमत है। दूसरी चीज हैं—प्रेम में एक रूपांतरित कर देने वाली शक्ति है। वह तुम्ह भारहीन होने में सहायता करती है, वह तुम्हें पंख देती है। तुम अनंत की ओर सभी के पार जा सकते हो। धार्मिक विचारक इससे सहमत होंगे कि प्रेम परमात्मा और विद्युत… अधिक पढ़ें ओशो – प्रेम योग 

ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ 

​ आग – सी सीने में रह-रह के उबलती है , न पूछ अपने दिल पे मुझे काबू ही नहीं रहता है ।। कवि लिखते रहे इंकलाब की बातें भी , बगावत के गीत भी । मगर कवियों से कहीं बगावत हो सकती है ! गीत ही रच सकते हैं , गीत ही गुनगुना सकते… अधिक पढ़ें ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ 

ओशो – तुम कौन हो ?

​ तुम भी बिलकुल भूल गए हो कि तुम कौन हो। और जन्मों-जन्मों में तुम बहुत जगह गए हो, बहुत यात्राएं की हैं। और उन यात्राओं में तुम अभी भी भटक रहे हो। कोई चाहिए जो सूत्र पकड़ा दे; तुम्हें थोड़ी सी याद आ जाए; तुम अपने घर के सामने खड़े हो जाओ। एक बार… अधिक पढ़ें ओशो – तुम कौन हो ?

ओशो – ध्यान धन है ।

​ संसार में लोग गंवाकर जाते हैं, कमाकर नहीं।  अक्सर लेकिन हम समझते हैं कि लोग कमा रहे हैं।  बाजारों में लोग कमाने में लगे हैं।  पूछो तो जरा गौर से! क्या कमाकर ले जाओगे?  क्या कमा रहे हो? गंवाकर जाओगे।  एक संपदा थी भीतर, जिसको लुटाकर जाआगे।  आत्मा बेच दोगे, ठीकरे खरीद लोगे।  जीवन… अधिक पढ़ें ओशो – ध्यान धन है ।

ओशो – पूर्व जन्म को जाना जा सकता है ।

प्रश्न:-क्या हम अपने अतीत के जन्‍मों को जान सकते है ? ओशो—निश्‍चित ही जान सकते है। लेकिन अभी तो आप इस जन्‍म को भी नहीं जानते है, अतीत के जन्‍मों को जानना तो फिर बहुत कठिन है। निश्‍चित ही मनुष्‍य जान सकता है। अपने पिछले जन्‍मों को। क्‍योंकि जो भी एक बार चित पर स्‍मृति… अधिक पढ़ें ओशो – पूर्व जन्म को जाना जा सकता है ।