ओशो – जीवन और शक्ति :

  जो समाज युद्ध में डूबे और उबरे , वे ही समाज चांद पर भी अपने आदमी को उतार पाए हैं  हम नहीं उतार पाए हैं । शांतिवादी नहीं उतार पाया । और चांद आज नहीं कल , युद्ध में बड़ा कीमती हैं  । जिसके हाथ में चांद होगा , उसके हाथ में पृथ्वी होगी… अधिक पढ़ें ओशो – जीवन और शक्ति :

ओशो – वास्तविक सन्यास कैसा हो ?

  यही मेरा अभिप्राय है जब मैं कहता हूँ कि संन्यासी हो जाओ — बस हो जाओ! तुम्हारे भगवा रंग के वस्त्र, तुम्हारी माला — ये नियम हैं। यह एक खेल है। किंतु ये वह नहीं हैं जो मेरा वास्तविक संन्यास से अर्थ है। लेकिन तुम खेलों के ऐसे अभ्यस्त हो कि इससे पहले कि… अधिक पढ़ें ओशो – वास्तविक सन्यास कैसा हो ?

ओशो – जागरण जरूरी है ।

मैं तो यह भी नहीं कहता कि मानो कि ईश्वर है। मैं तो यह भी नहीं कहता कि मानो कि मोक्ष है। मैं तो यह भी नहीं कहता कि मानो कि पुनर्जन्म है। मैं तो कहता ही नहीं कि कुछ मानो! मैं तो कहता हूँ: जो है, इस क्षण अभी, यहाँ — उसे जानो। मानने… अधिक पढ़ें ओशो – जागरण जरूरी है ।

ओशो – सन्यास आंदोलन !

मैंने संन्यास आंदोलन रोका नहीं है, मैंने इसे धर्म बनने से रोका है! आंदोलन एक प्रवाह होता है; यही आंदोलन का अर्थ है — वह गति कर रहा है, वह बढ़ रहा है। परंतु ‘धर्म’ मृत है, उसका गति करना रुक गया है, उसका बढ़ना रुक गया है। वह मृत है। उसके लिए श्मशान ही… अधिक पढ़ें ओशो – सन्यास आंदोलन !

ओशो – अपने वेद को बदल लो !

बुद्ध के पास लोग आ जाते थे और वे वेदों की दुहाई देते थे कि वेद में ऐसा कहा है, आप ऐसा कहते हैं; उपनिषद में ऐसा कहा है, आप ऐसा कहते हैं।       आदमी बड़ा दयनीय है। जहा से उपनिषद पैदा होते हैं, वह आदमी मौजूद है। जहां से वेद जन्म लिए… अधिक पढ़ें ओशो – अपने वेद को बदल लो !

ओशो – बुद्ध विशेष ।

​बुद्ध के साथ मनुष्य-जाति  का एक नया अध्याय शुरू हुआ।  पच्चीस सौ वर्ष पहले बुद्ध ने वह  कहा जो आज भी सार्थक’ मालूम पड़ेगा,  और जो आने वाली सदियों तक सार्थक रहेगा।  बुद्ध ने विश्लेषण दिया, एनालिसिस दी।  और जैसा सूक्ष्म विश्लेषण उन्होंने किया,  कभी किसी ने न किया था,  और फिर दुबारा कोई न… अधिक पढ़ें ओशो – बुद्ध विशेष ।

ओशो – सच्च और झूठ 

एडोल्फ हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सच और झूठ में मैंने इतना ही फर्क जाना कि जो झूठ बहुत बार दोहराए जाते हैं, वे सच हो जाते हैं। ज्यादा फर्क नहीं है। और वह ठीक कह रहा है। उसने अनेक झूठ खुद दोहराए जिंदगीभर। और भरोसा दिला दिया एक बडी समझदार जाति… अधिक पढ़ें ओशो – सच्च और झूठ 

ओशो – पाण्डित्य और ज्ञान !

91. [{}ॐ{}]~”ओशो पत्र-पुष्पम्”~[{}ॐ{}] •=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•  “मृत पाण्डित्य नहीं—चाहिए जीवन्त अनुभूति” •=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•=•    दोपहर ढलने को है ।  आकाश अभी खुला था, फिर  जोर  की  हवाएँ  आयीं  और  अब  काली बदलियों में वह ढँका जा रहा है ।    सूरज छिप गया है,  और हवाओं में ठंडक है ।    एक फकीर द्वार पर आया है ।… अधिक पढ़ें ओशो – पाण्डित्य और ज्ञान !

ओशो – सरलता तुम्हारा स्वभाव है ।

​परमात्मा सबके हृदय के द्वार पर खटखटाता है—खोल दो द्वार! परमात्मा का बीज आ जाना चाहता है भूमि में कि अंकुरित हो जाए। लेकिन जिनके हृदय कठोर हैं, कठिन हैं, उन हृदयों पर पड़ा हुआ बीज सूख जाएगा, नहीं अंकुरित हो सकेगा। न ही उस बीज में पल्लव आएंगे, न ही उस बीज में शाखाएं… अधिक पढ़ें ओशो – सरलता तुम्हारा स्वभाव है ।