परमात्मा कब, किस द्वार से तुममें प्रवेश करेगा? Osho


अंगुलिमाल बुद्धत्व को उपलब्ध हुआ। कुछ सोचा भी न होगा, कभी कल्पना भी न की होगी, कभी सपना भी न देखा होगा।

वाल्मीकि ने सोचा था? नहीं सोचा था। अचानक मिलना हो गया था नारद से। नारद को लूटना चाहता था वाल्मीकि। लेकिन नारद ने कहा, मुझे लूटे इसके पहले घर जाकर एक बात पूछ आ कि लूटने से जो पाप लगता है, घर के लोग, जिनके लिए तू लूट रहा है–पत्नी, तेरे पिता, तेरे बेटे–वे भागीदार होंगे पाप में? साझीदार होंगे पाप में! वाल्मीकि हंसा। तब उसका नाम था वाल्या भील, वह हंसा। उसने कहा, मुझे धोका देते हो? इधर मैं पूछने जाऊं, तुम उधर भाग जाओ! नारद ने कहा, मुझे बांध दो एक वृक्ष से। बांधकर गया वाल्या नारद को, पूछने घर!

पिता से पूछा, पिता ने कहा कि मुझे क्या मतलब कि तू कैसे पैसा लाता है। बूढ़े बाप की सेवा करना तेरा कर्तव्य है, पाप-पुण्य तू जान! इसमें कैसी साझेदारी? मैंने कभी तुझसे पूछा भी नहीं, न कभी पूछूंगा, तू कैसे कमाता है, यह तू सोच! पत्नी ने कहा, मुझे क्या पता; मुझे विवाह कर लाए थे, तब से तुम्हारा कर्तव्य है कि मेरी चिंता करो, मेरी देखभाल करो। मैं तुम्हारा घर संभालती, तुम्हारा भोजन बनाती, तुम्हारे बच्चे पालती, तुम्हारे पिता की सेवा करती–और क्या चाहते हो? इतना बहुत है। पाप-पुण्य का हिसाब तुम समझो! बेटों ने कहा, हमें क्या पता? तुमने जन्म दिया! हम तो अभी बड़े भी नहीं हुए। हमें कुछ पता भी नहीं किसको पुण्य कहें, किसको पाप। आप समझें। वाल्य चौंका और जागा।

लौटा तो नारद से कहा, मुझे क्षमा कर दें, मैं भूल में था। वे कोई भी मेरे पाप में भागीदार नहीं हैं। तो अब और पाप नहीं हो सकेगा। मुझे कुछ मंत्र दें, मुझे कुछ विधि दें, मुझे कुछ जीवन–रूपांतरण की प्रक्रिया दें। बेपढ़ा–लिखा हूं, शास्त्र पढ़ नहीं सकता, मुझ सरल, सीधे-सादे आदमी को, ग्रामीण आदमी को भी कुछ उपाय हो तो बता दें। नारद ने कहा, तो तू फिर राम-राम जप!

लौटे जब नारद तो वाल्या ज्ञान को उपलब्ध हो गया था, वाल्या नहीं था, वाल्मीकि हो गया था। ज्योति बिखर रही थी उससे। आभा–मंडल उसे घेरे हुए था। सैकड़ों गजों की दूरी से उसकी सुगंध, उसका संगीत नारद को अनुभव होने लगा। पास आए तो बहुत चौंके। वह राम-राम तो भूल गया था, मरा-मरा जप रहा था। लेकिन मरा-मरा जपते भी! राम-राम जोर से जपो, बार-बार जपो, तेजी से जपो : राम, राम, राम, राम, बेपढ़ा-लिखा आदमी था, भूल-चूक हो गयी, “रा” पीछे हो गया, “म” आगे हो गया, तो मरा-मरा जपता रहा। लेकिन मरा-मरा जपकर भी राम को उपलब्ध हो गया। जाप में एक भाव था, एक श्रद्धा थी, एक सरलता थी, एक हार्दिकता थी, एक प्रेम था। सोचा होगा वाल्या ने कभी कि ऐसे जीवन में क्रांति हो जाएगी? नहीं तुम जानते परमात्मा कब, किस द्वार से तुममें प्रवेश करेगा? ओशो, राम दुवारे जो मरै--( सन्त मलूक वाणी )

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